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काली हल्दी

बिहार के आशीष कुमार अपने गांव में काली हल्दी की खेती कर मध्य प्रदेश तक सप्लाई कर रहे हैं।

बिहार के आशीष कुमार अपने गांव में काली हल्दी की खेती कर मध्य प्रदेश तक सप्लाई कर रहे हैं।

किसान आशीष कुमार का कहना है, कि उन्होंने एक लेख में पढ़ा था कि बिहार में काली हल्दी विलुप्त हो चुकी है। अब कोई काली हल्दी की खेती नहीं करता है। ऐसे में मैंने काली हल्दी की खेती करना चालू किया। जैसा कि हम जानते हैं, कि हल्दी एक औषधीय मसाला होता है। इसका इस्तेमाल खाना निर्मित करने के साथ-साथ आयुर्वेदिक औषधियाँ तैयार करने के लिए किया जाता है। हल्दी के बिना हम स्वादिष्ट दाल एवं सब्जी की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। अधिकांश लोगों का मानना है, कि हल्दी का रंग केवल पीला ही हो होता है। परंतु, इस प्रकार की कोई बात नहीं है, आज भी भारत में किसान काली हल्दी का उत्पादन कर रहे हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही किसान के विषय में बताएंगे, जिन्होंने काली हल्दी की खेती चालू कर लोगों के समक्ष मिसाल प्रस्तुत की है। वर्तमान में अन्य दूसरे किसान भी उनसे काली हल्दी की खेती करने का प्रशिक्षण ले रहे हैं।

आशीष अपने गांव में लगभग 3 वर्ष से काली हल्दी की खेती कर रहे हैं

एनबीटी की एक खबर के अनुसार, काली हल्दी की खेती करने वाले किसान का नाम आशीष कुमार सिंह है। आशीष कुमार बिहार राज्य के गया जनपद के अंतर्गत आने वाले टिकारी गांव के निवासी हैं। आशीष कुमार अपने निज गांव में 3 साल से काली हल्दी की खेती कर रहे हैं। आशीष कुमार सिंह का कहना है, कि उनको कृषि से जुड़े लेख एवं खबरें पढ़ने का अत्यधिक शौक है। एक दिन उन्होंने अखबार में काली हल्दी के विषय में एक लेख पढ़ा था। इसके पश्चात आशीष ने काली हल्दी की खेती करने की योजना बनाई है। मुख्य बात यह है, कि आशीष विलुप्त होने की स्थिति पर पहुंच चुकी विभिन्न फसलों की खेती कर रहे हैं। यह भी पढ़ें: जानिए नीली हल्दी की खेती से कितना मुनाफा कमाया जा सकता है

काली हल्दी से आयुर्वेदिक औषधियां निर्मित की जाती हैं

आशीष कुमार ने बताया कि उन्होंने लेख में पढ़ा था कि बिहार में काली हल्दी बिल्कुल खो चुकी है। अब इसकी खेती कोई नहीं करता है। ऐसे में मैंने इसकी खेती करना चालू कर दिया। उनके द्वारा उत्पादित हल्दी की सप्लाई सर्वाधिक मध्य प्रदेश में होती है। उनके अनुसार मध्य प्रदेश में बहुत सारे किसान उनसे जुड़े हुए हैं। आशीष काली हल्दी की मांग आते ही आपूर्ति कर देते हैं। दरअसल, मध्य प्रदेश में आदिवासी समुदाय के लोग अपना कोई भी शुभ कार्य आरंभ करने से पूर्व काली हल्दी का इस्तेमाल करते हैं। इसके अतिरिक्त इससे विभिन्न आयुर्वेदिक औषधियाँ भी तैयार की जाती हैं।

काली हल्दी की बुवाई हेतु कितना बीज उपयोग होता है

आशीष डेढ़ कट्ठे भूमि में काली हल्दी का उत्पादन कर रहे हैं। इससे उनको लगभग डेढ़ क्विंटल काली हल्दी की पैदावार मिलती है। बतादें, कि डेढ़ कट्ठे भूमि में काली हल्दी की बुवाई करने हेतु 10 किलो बीज की आवश्यकता होती है। उनका कहना है, कि काली हल्दी की खेती आप गमले में भी चालू कर सकते हैं। काली हल्दी की खेती में जल की काफी कम आवश्यकता है। अशीष कुमार सिंह से प्रेरणा लेकर दर्जनों की संख्या में किसानों ने काली हल्दी की खेती शुरू कर दी है। वह काली हल्दी के बीज 300 रुपये किलो के हिसाब से बेचते हैं। काली हल्दी में कुरकुमीन पीली हल्दी की तुलना में ज्यादा पाई जाती है। कृषि वैज्ञानिक देवेंद्र मंडल का कहना है, कि काली हल्दी का ओषधि के तौर पर सेवन करने से विभिन्न प्रकार के रोग ठीक हो जाते हैं। वर्तमान में बाजार के अंदर एक किलो काली हल्दी की कीमत 1000 से 5000 रुपये के मध्य है।
पीली हल्दी की जगह काली हल्दी की खेती कर किसान कम लागत में अधिक आय कर रहा है

पीली हल्दी की जगह काली हल्दी की खेती कर किसान कम लागत में अधिक आय कर रहा है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि काली हल्दी की खेती करने पर पानी की खपत कम होती है। यदि आप एक एकड़ में काली हल्दी की खेती करते हैं, तो आपको 50 से 60 क्विंटल तक पैदावार मिलेगा। 

साथ ही, एक एकड़ से 10 से 12 क्विंटल तक सूखी हल्दी का उत्पादन होगा। ऐसे में काली हल्दी की खेती करने पर काफी अच्छी खासी आमदनी होती है। लोगों का मानना है, कि हल्दी केवल पीले रंग की ही होती है। 

परंतु, इस तरह की कोई बात नहीं है। दरअसल, हल्दी काले रंग की भी होती है। विशेष बात यह है, कि काली हल्दी का भाव भी पीली हल्दी की तुलना में ज्यादा होता है। इसका इस्तेमाल आयुर्वेदिक औषधियां बनाने में किया जाता है। 

इसमें पीली हल्दी की तुलना में विटामिन्स और मिनिरल्स भी ज्यादा पाए जाते हैं। यही कारण है, कि अब बिहार में एक किसान ने इसकी खेती भी चालू कर दी है। इससे किसान की काफी मोटी आमदनी हो रही है।

काली हल्दी की खेती करने वाला किसान कमलेश

जानकारी के अनुसार, काली हल्दी की खेती करने वाले किसान का नाम कमलेश चौबे है। वे पूर्वी चम्पारण के नरकटियागंज प्रखंड स्थित मुशहरवा गांव के मूल निवासी हैं। 

उन्होंने अभी एक कट्ठे भूमि पर काली हल्दी की खेती चालू की है। उन्होंंने एक कट्ठे जमीन में 25 किलो काली हल्दी की बुवाई की थी, जिससे लगभग डेढ़ क्विंटल हल्दी का उत्पादन हुआ है। इससे उन्हें काफी अच्छी आमदनी हो रही है। 

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किसान हल्दी विक्रय से कितना कमा सकते हैं

विशेष बात यह है, कि कमलेश ने काली हल्दी का उत्पादन करने के लिए नागालैंड से इसके बीज इंपोर्ट किए थे। बतादें, कि एक किलो बीज 500 रुपये में आए थे। ऐसी स्थिति में 25 किलो बीज खरीदने के लिए उन्हें साढ़े 12 हजार रुपये का खर्चा करना पड़ा। 

वर्तमान में बाजार के अंदर काली हल्दी की कीमत 500 से 5000 रुपये किलो के मध्य है। यदि कमलेश 1000 रुपये किलो भी काली हल्दी बेचते हैं, तो 150 किलो हल्दी विक्रय के उपरांत उन्हें डेढ़ लाख रुपये की आमदनी होगी।

काली हल्दी में कितने तत्व विघमान होते हैं

कृषि वैज्ञानिक अभिक पात्रा के अनुसार काली हल्दी सेहत के लिए बेहद फायदेमंद होती है। इससे बहुत सारी औषधीय दवाइयां निर्मित की जाती हैं। पीली हल्दी की अपेक्षा में इसकी कीमत बहुत गुना अधिक होती है। 

वर्तमान में उत्तराखंड के किसान भी इसकी बड़े पैमाने पर खेती कर रहे हैं। काली हल्दी में एंथोसायनिन ज्यादा मात्रा में विघमान होता है। इस वजह से यह गहरे बैंगनी रंग की दिखती है। 

साथ ही, काली हल्दी में एंटी अस्थमा, एंटीऑक्सिडेंट, एंटीफंगल, एंटी- कॉन्वेलसेंट, एनाल्जेसिक, एंटीबैक्टीरियल और एंटी-अल्सर जैसे विशेष गुण मौजूद होते हैं।

उत्तर प्रदेश के उत्कृष्ट ने CRPF की सरकारी नौकरी छोड़ बने सफल किसान

उत्तर प्रदेश के उत्कृष्ट ने CRPF की सरकारी नौकरी छोड़ बने सफल किसान

उत्तर प्रदेश राज्य के उत्कृष्ट पांडेय व उनके पिता जी ने एकसाथ मिलकर के 60 हजार चंदन की नर्सरी तैयार कर डाली है। सरकारी नौकरी को त्याग उन्होंने सफेद चंदन एवं काली हल्दी की फसल उत्पादन करने का निर्णय लिया है। केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल मतलब CAPF's के एक अधिकारी ने स्वयं की अच्छी खाशी नौकरी छोड़ सफेद चंदन एवं काली हल्दी का उत्पादन आरंभ किया है। इस कदम का एक उद्देश्य उत्तर भारत में इन उत्पादों की कृषि आरंभ कर ग्रामीण युवाओं हेतु रोजगार के नवीन अवसर प्रदान करना भी है। उत्तर प्रदेश राज्य के उत्कृष्ट पांडेय ने 2016 में सशस्त्र सीमा बल यानी SSB में Assistant Commandant की स्वयं की नौकरी छोड़ दी। लखनऊ से लगभग 200 किलोमीटर दूरस्थ प्रतापगढ़ के भदौना गांव में स्वयं की कंपनी मार्सेलोन एग्रोफार्म प्रारंभ की।


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उत्कृष्ट पांडेय ने बताया है, कि मैं चाहता हूं कि युवा देश को आत्मनिर्भर करने में सहायता करें। उन्होंने 2016 में नौकरी त्याग दी एवं विभिन्न विकल्पों पर विचार विमर्श करने के उपरांत सफेद चंदन एवं काली हल्दी का उत्पादन करने का निर्णय लिया गया है।

उत्कृष्ट पांडेय ने कहाँ से की है अपनी पढ़ाई

उत्कृष्ट पांडेय ने बताया है, कि सब सोचते थे, कि चंदन का उत्पादन केवल दक्षिण भारत में ही किया जा सकता है। लेकिन मैंने अत्यधिक गहनता से अध्ययन कर पाया कि हम उत्तर भारत में भी इसका उत्पादन कर सकते हैं। इसके बाद उन्होंने बेंगलुरु स्थित इंस्टिट्यूट ऑफ वुड साइंस एंड टेक्नोलॉजी (Institute of Wood Science and Technology ) में पढ़ाई की। उत्कृष्ट का दावा है, कि एक किसान तकरीबन 250 पेड़ों को 14-15 वर्ष में पूर्ण रूप से तैयार होने पर दो करोड़ रुपये से ज्यादा आय कर सकता है। इसी प्रकार काली हल्दी का भाव 1,000 रुपये प्रति किलोग्राम तक बढ़ गया है।

किसकी सहायता से की उत्कृष्ट ने नर्सरी

उत्कृष्ट पांडेय स्वयं के पिता के साथ साझा तौर पर 60 हजार चंदन की नर्सरी तैयार करदीं हैं। साथ ही, 300 चंदन के पौधे अब पेड़ में तब्दील हो चुके हैं। फिलहाल चंदन का वृक्ष तकरीबन 7, 8 फीट तक के हो गए हैं। सेवानिवृत्त असिस्टेंट कमांडेंट द्वारा काली हल्दी की भी कई बीघे में की जा रही है। काली हल्दी का उपयोग औषधियाँ बनाने के लिए किया जाता है, इसी वजह से इसका अच्छा खासा मूल्य मिल जाता है। पूर्व अफसर ने नौकरी छोड़के बेहद कीमती चंदन एवं हल्दी का बड़े स्तर पर उत्पादन करने की वजह से प्रत्येक व्यक्ति उनकी सराहना करता हुआ नजर आ रहा है।